WARRIOR MOSQUITO Unsung Protectors of the Earth


Episode One – युद्ध और जीवन
कहते हैं, जब-जब पृथ्वी पर धर्म की ग्लानि होती है, पापाचार बढ़ने लगता है, तब-तब ईश्वर स्वयं अथवा अपने किसी दूत को धर्म की पुनर्स्थापना के लिए पाप और पुण्य में संतुलन स्थापित करने के लिए पृथ्वी पर भेजते हैं।
ये समय भी कुछ ऐसा ही था, जब 1500 से 1799 के उथल-पुथल भरे वर्षों के बीच, मानवता की अभिलाषाएँ अपूर्व ऊँचाईयों को छू रही थी। लेकिन, अपने स्वार्थ और लोभ के मद में चूर इंसान यह देख ही न सका कि उसे अपने कर्मों की क्या भारी कीमत अदा करना होगी? ये कहानी है, उस समय की जब मानव ने सम्पूर्ण जगत को युद्ध और कत्लेआम कर रक्तरंजित कर चुका था। इंसान अपनी तुच्छ चाहतों की पूर्ति के लिए एक-दूसरे की गला घोंटकर अपने कूर साम्राज्य की पताका लहरा रहा था।
परन्तु इसका दुष्प्रभाव केवल मानवता के भविष्य पर ही नहीं पड़ा। मानव के किये दुष्कृत्यों की कीमत प्रकृति को और मासूम जानवरों को भी चुकानी पड़ी। प्रकृति प्रदूषित हुई, इंसानों की तरह ही असंख्य जानवरों ने भी अपने परिवार को खोया, लाखों जानवर बेघर हो गये और न जाने कितने ही निर्दोष मारे गये। सच्चाई को देखते हुए भी मानव ने अपनी गलतियों से कुछ नहीं सीखा, बल्कि वह तो एक नहीं बल्कि दो-दो विश्व युद्धों की तैयारी में जा लगा। जब उसे अपने ही जैसे दूसरे इंसानों के प्रति कोई संवेदना नहीं थी, तो वह जानवरों की क्या ही परवाह करता?
इसलिये, संसार का प्रत्येक जानवर अपने भविष्य की चिंता से व्याकुल था मानव द्वारा लाया गया कलियुग जानवरों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर रहा था। बहुत से जानवर अभी से ही विलुप्त होने लगे थे या विलुप्ति की कगार पर आ खड़े थे। यहीं वजह थी कि आज हर एक पक्षी, हर एक जीव एक साथ खड़े होकर आसमान की और नजरें उठाये खड़ा था। हर किसी की आँखें नम थी। वे सब मन में एक छोटी सी आशा लिये ईश्वर को पुकार रहे थे और ईश्वर से ये गुहार लगा रहे थे कि, वह इस धरा पर आये और इंसानों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों से उन्हें बचाये, उन्हें सबक सिखाये ताकि, वे कम से कम उस धरती का ही सम्मान करना सीख सकें, जिसके वजूद पर उनका वजूद टिका हुआ है।
Episode 02 – रक्षक का जन्म
ये इंसान किसी परमसत्ता को पूजते हैं। कहते हैं, वह सारी मुरादें पूरी कर देता है। परन्तु क्या वह हम जानवरों की प्रार्थना सुनेगा? जो देवता स्वयं इंसानों की तरह दिखायी देता हो, बातें करता हो, कपड़े पहनता हो और आलीशान मकानों में रहता हो, क्या वह हम जानवरों पर कृपा करेगा?
जरा हमारे पूर्वजों का इतिहास उठाकर तो देखो, वे कितने महाशक्तिशाली हुआ करते थे। उनका पूरे विश्व पर वर्चस्व था। उनका आकार बड़ा हुआ करता था, उनके नाखून, उनके जबड़े, उनके सींघ कितने घातक और नुकीले हुआ करते थे। उनकी दहाड़मात्र से ही आकाश गूँज उठता था, लेकिन, जब से उस रचयिता ने इन इंसानों की रचना की है, उसने हमसे हमारा सब कुछ छीन लिया। हम अपने ही ग्रह पर असहाय बेघरों की तरह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। आज इंसान तय करते हैं कि, हम कहाँ रहेंगे? क्या खायेंगे? कैसे जियेंगे? और कैसे मरेंगे? इंसानों की तरह उनकी तरह दिखने वाला देवता आखिर हम जानवरों पर क्यों ही कृपा करेगा?
हाँ! ये सच है, जो दिखायी नहीं देता, उस पर यकीन करना मुश्किल होता है। लेकिन, हमारे पास कोई और रास्ता भी तो नहीं था। अब यदि मरना ही है, तो आखिरी कोशिश करने के बाद मर लिया जाये, कोशिश में क्या हर्ज है?
जब सच्चे मन से प्रार्थना की जाये, तो ईश्वर को झुकना ही पड़ता है और जब सभी जानवरों ने एकजुट होकर ईश्वर से प्रार्थना की तो ईश्वर ने उनकी प्रार्थना निश्चित ही सुनी। वह जान गया कि उसने जानवरों के साथ छल किया है और अब जानवरों को न्याय मिलना चाहिए। उसने ये भी देखा कि उसने जिसे अपनी सर्वोत्तम रचना माना था, उस जीव यानि मानव ने पृथ्वी की क्या दुर्दशा की है? और इस गलती की सजा भी इंसानों को अवश्य मिलना चाहिए और तब ईश्वर ने इंसानों को सजा देने के लिए ऐसे शक्तिशाली जीव की रचना में लग गया, जिसके वजूद का केवल एक ही मकसद था इंसानों और जानवरों के बीच एक संतुलन बनाये रखना ।
ईश्वर ने जंगलों की रक्षा के लिए बाघ, तेंदुएँ, सियार आदि बनाये थे और वहीं जल स्त्रोतों के लिए माँसाहारी मछलियाँ, सर्प, और मगरमच्छ आदि बनाये थे, परन्तु इंसानों ने बड़े से बड़े जानवर को भी कमजोर साबित कर दिया था। इंसान आज हाथी जैसे बलवान जानवर पर तो ऐसे बैठता है, जैसे हाथी उनका पालतू नौकर हो और इसलिये ये जरूरी था कि ईश्वर एक ऐसे जीव की रचना करे, जिन्हें इंसान कभी काबू न कर सके लेकिन, साथ ही साथ ईश्वर ने ये भी ध्यान रखा कि उसके द्वारा रचित ये जीव इंसानों की तरह ही प्रगति कर संसार पर किसी नयी समस्या का कारण न बन सके इसलिये उसने उस जीव को दीर्घायु से नहीं नवाजा और शीघ्र ही वह जीव जानवरों के समक्ष प्रकट हुआ जानवरों को जरा भी विश्वास नहीं था कि, ईश्वर उनकी सुनेगा। सभी उस जीव को देखने के लिए लालायित हुए जा रहे थे।
ये वहीं जीव था, जिसे इंसानों ने नाम दे रखा था, मच्छर!
Episode 03 – मच्छर – जानवरों का मित्र अथवा ईश्वर का छल
प्रत्येक जानवर आज उस जीव जिसे इंसान मच्छर के नाम से जानते हैं, को चारों ओर से घेरकर खड़े थे। इस जीव के छः पैर थे, उड़ने के लिए पंख थे। उसका मुख लम्बी नालीनुमा था । उस जीव के अनुसार उसका मुख्य हथियार यहीं नालीनुमा मुख है, जिसे शुण्ड कहते हैं।
खैर, जानवरों के चेहरे से स्पष्ट था कि वे मच्छर का छोटा आकार देखकर उसकी योग्यता पर शक कर रहे हैं। उन्होंने आज से पहले ऐसा जीव कभी नहीं देखा था और क्योंकि उनके जीव जगत में शक्ति का पैमाना भी शरीर के आकार पर आधारित है, इसलिये मच्छर की काबिलियत पर प्रश्न उठना लाजमी ही था। बंदर ने तो ये तक कह दिया था, वह तो स्वयं ही इस मच्छर को अपने एक हाथ से मसल सकता है फिर तो इंसानों के लिए ऐसा करना और भी आसान होता।
उस जीव को देखकर ईश्वर के प्रति और घृणित नजरों से देखने लगे। वे भोले-भाले जीव आखिर कैसे ईश्वर की लीला को समझ पाते। सभी के मन में बस यहीं खयाल काँध रहा था कि, जब इंसान बड़े जीवों को रौंद सकते हैं, तब वे उस जीव को कैसे न मसल पाते, जिसका आकार नाखून बराबर भी न हो।
और तब मच्छर ने सभी जीवों को विश्वास दिलाया कि जानवरों के साथ जो अन्याय हुआ है, उनका बदला वह इंसानों ने जरूर लेगा। इंसानों ने जितना खून बहाया है, खून की एक-एक कीमत वसूलेगा और इस वादे के साथ मच्छर इंसानों की और निकल पड़ा।
Episode 04 – मलेरिया – इंसानों की मौत का सामान
यदि कभी कोई बाघ या शेर इंसानों की बस्ती में घुसता तो उसे दूर से ही देख लिया जाता और
बंदूक की एक गोली से नेस्तनाबूद कर दिया था। ऐसे ही यदि कोई हाथी भी उनकी बस्ती उजाड़ने की कोशिश करता तो वह भी इंसानों की चलाई बंदूक की कुछ गोलियाँ खाकर ढेर हो जाता, परन्तु इंसानों के ये हथियार मच्छर के आगे बेकार थे। इंसान मच्छर को जब तक देख पाते, जब तक मच्छर अपना काम कर चुका होता। मच्छर बहुत ही रहस्यमयी ढंग से इंसानों की नाक के नीचे अपनी सेना का निर्माण करता चला गया। वह इंसानों के घरों में, उनके बेडरूम में, उनके बिस्तरों पर, उनके कार्यालयों में हर कहीं फैलता चला गया। उसने बहुत तेजी के साथ एक ही समय में कई इंसानों को एक साथ निशाना बनाया। इंसान कभी सोच नहीं सकते थे कि. उनके जीवन का सबसे बड़ा खतरा अपने सबसे छोटे रूप में आयेगा । मच्छर इंसानों के मुकाबले काफी तेज था। वह तेजी से उन पर हमला करके छुपने में माहिर था। उसे पकड़ना भी कुछ मुश्किल था परन्तु यदि एक मच्छर को मार भी दिया जाता, तो भी उसकी सेना का कोई अंत नहीं था । जितनी तेजी से मच्छर मारे जा रहे थे, उससे कई गुना तेजी से मच्छरों की सेना का निर्माण हो रहा था और देखते ही देखते एक के बाद एक इंसानों के मरने का समाचार हर दिन अखबारों में आने लगा। जानवरों ने जब ये समाचार सुना और जब उन्होंने इंसानों को अपनों की लाशों को जलाते अथवा दफनाते हुए और अपनों की मौत पर आँसू बहाते हुए देखा तब उन्होंने पहली बार अपने दुःख के बोझ से आजादी महसूस की।
अब जानवरों को अपने अस्तित्व खोने का कोई डर नहीं था। जानवरों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। हर कोई सोच रहा था कि शायद अब इंसान बदल जायेगा। शायद अब इंसान प्रकृति का महत्व समझेगा और उसके साथ संतुलन पुनःस्थापित करेगा। परन्तु किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था।
Episode 05 – विश्वयुद्ध का आरम्भ
सभी को लग रहा था कि मच्छरों की जीत हो रही है। मच्छरों ने अकेले ही कुछ ही दशकों में लाखों इंसानों को मौत की नींद सुला दिया था और इसके विरोध में इंसानों ने मच्छरों को खत्म करने के लिये तरीके खोजने भी शुरू कर दिये थे। परन्तु इसके साथ ही अपनी आदत से मजबूर इंसानों ने एक ऐसे युद्ध की भी घोषणा कर दी थी, जो इतिहास में हुए समस्त युद्धों से भी अधिक भयानक और विनाशकारी था। ये केवल आम युद्ध नहीं था, ये था विश्वयुद्ध ।
आखिर क्यों इंसान इतिहास में हुई गलतियों से सीखने के बजाय अतीत के घावों को नासूर की तरह पलने देते हैं? और क्यों सामने सैंकड़ों उपाय मौजूद होते हुए भी अपने स्वार्थ या चाहतों को पूरा करने के लिए केवल युद्ध की राह अपनाते हैं? क्यों तुच्छ आकांक्षओं के लिये हत्याओं और विनाश के इस खेल को जायज ठहराते हैं?
इस युद्ध को रोकना जरूरी था और जब ये काम कोई न कर सका, तब मच्छरों को ही स्वयं इस काम को अंजाम देने के लिए आगे आना पड़ा। हाँ! मच्छरों को तुम सभी में से शायद ही कोई जानता हो कि, मच्छरों ने युद्ध को रोकने के लिए अपने स्तर पर कितनी कोशिशें की और इंसानों के बीच चल रहे युद्ध में अपनों की कुर्बानियाँ दी ये सच है, मच्छरों ने अपने मलेरिया वायरस का इस्तेमाल करके हजारों सैंकड़ों को बीमार बनाया और जरूरत पड़ने पर जानें भी ली, ताकि इंसान दूसरे देश के लोगों के लिए न सही परन्तु अपने लोगों को बचाने के लिए ये युद्ध रोक दें, परन्तु ऐसा न हो सका।
विश्वयुद्ध के अंतिम चरणों के दौरान ही मच्छरो की मदद के लिए एक और ताकत ने जन्म लिया, जिसे स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना गया। परन्तु वह तो दो साल में ही ढेर हो गया। 1944 साल आते-आते इंसानों ने मच्छरों के द्वारा फैलाये जा रहे वायरस से लड़ने के तरीके खोजने में सफलता पा ली और धीरे-धीरे मच्छरों का प्रकोप भी कम होता गया। जिसके फलस्वरूप एक बार पुनः जानवरों के सिर पर दुःख के काले बादल मण्डराने लगे।
Episode 06 – आशा की नई लहर
भले ही जानवरों ने एक बार फिर आशायें खो दी हों, भले ही इंसानों ने अब दूसरे विश्वयुद्ध की घोषणा कर दी हो। परन्तु अब मामला व्यक्तिगत हो चुका था। ये जंग इंसानों और जानवरों के बीच नहीं रह गयी थीं। अब ये जंग इंसान बनाम मच्छर की हो चुकी थी। इंसानों ने मच्छरों के गुरूर को चोट पहुँचायी थी। मच्छरों ने तय कर लिया था कि अब या तो इंसान ही रहेंगे या मच्छर।
मच्छरों ने इंसानों की तरह कभी हार न मानने की जिद पकड़ ली थी। ये ठान चुके थे कि अब मच्छरों को भी अपनी ताकत और बढ़ाने का वक्त आ चुका था और आखिर क्यों नहीं? जब इंसान खुदको लगातार ताकतवर बनाने में लगे हुए थे, तो ऐसे में मच्छर क्यों पीछे हटें और तब मच्छरों का सबसे शक्तिशाली रूप प्रकट हुआ।
ये मच्छर अब न सिर्फ शाम या रात के समय परन्तु दिन में भी इंसानों पर हमला करने में सक्षम था और इसका जहर 4 से 10 दिन के भीतर ही इंसान को बहुत बीमार कर सकता था। इस मच्छर का आकार और भी छोटा था, जिससे इसे देख पाना इंसानों के लिए और भी मुश्किल था । इसके शरीर की रचना भी पहले से अधिक आकर्षक हो गयी थी। पैरों पर काले और सफेद रंग की धारियाँ इंसानों के काल और कफन का संकेत थी और सबसे खास इसकी रफ्तार सामान्य मच्छरों से भी अधिक थी ये मच्छर था, डेंगू।
Episode 07 – अपरिवर्तनशील मानव
द्वितीय विश्वयुद्ध की अगुवाई के साथ ही मच्छरों ने भी वैश्विक स्तर पर एक नई जंग छेड़ दी थी। मच्छरों का अधिक शक्तिशाली रूप समूचे विश्व में फैल गया था और इंसानों से अपने पूर्वजों के अपमान का बदला ले रहा था। इस दौरान विश्व की तकरीबन आधी आबादी डेंगू की चपेट में थी।
परन्तु आज एक शताब्दी बीतने के बाद भी इंसानों और मच्छरों के बीच ये जंग लगातार बनी हुई है। दोनों ही एक-दूसरे को मारने के भरसक प्रयास में लगे हुए हैं। कभी इंसानों की जीत हो जाती तो कभी मच्छरों की जानवर आज भी असहाय और डर की स्थिति में बने हुए हैं। आज भी जानवरों को इंसानों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है। आज भी प्रकृति इंसानों द्वारा की जा रही बर्बादी के फलस्वरूप प्रदूषित हो रही है। प्रकृति की सैकड़ों मारों को झेलने के बावजूद, विनाश के प्रत्येक संकेतों के सामने होते हुए भी इंसान अभी भी सच्चाई को नजरअंदाज कर रहा है।
मच्छरों का प्रभाव कम होने के कारण आज हर कोई उसका उपहास बना रहा है। आज हर इंसान के घर में मच्छरों को मारने के कई उपाय हैं। यहाँ तक कि बच्चे भी अपनी त्वचा पर ऐसे रसायनों का इस्तेमाल करने लगे है कि यदि मच्छर उन्हें काट ले, तो उन रसायनों के कारण वह स्वयं ही मारा जाये। कभी जहरीले धुंए से या कभी बिजली के झटके या फिर इंसानों द्वारा हथेलियों से मसले जाने से लाखों मच्छरों की प्रतिदिन मौत हो रही है। अब तो मच्छरों का जहर भी इंसानों पर उतना प्रभावी नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था। पहले मलेरिया की खबरें हर दिन अख़बारों में आया करती थी, लेकिन अब मलेरिया का कोई नाम भी नहीं लेता।
2019 में आयी एक और महामारी का सामना करने के बाद भी इंसान के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। इंसान मरने मारने या पीठ पीछे छुरा घोंपने वाली नीतियों से इतर कोई कार्य नहीं कर रहा। वह तो स्वयं भी धीमे जहर के सेवन का आदी बना बैठा था। अब तो ये लगने लगा है कि ईश्वर द्वारा बनायी उसकी सर्वोत्तम रचना आगे क्या निर्णय लेगी? इसका जवाब तो ईश्वर भी नहीं दे सकता।
Episode 08 – उपसंहार
यदि इंसानों से पूछा जाये, मच्छर कौन हैं और वे कहाँ से आये? तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि, वे इन सवालों का क्या जवाब देंगे? इंसान मच्छरों को हमेशा से ही दुश्मन का दर्जा देंगे जबकि, खुदको नायक बुलायेंगे। वे केवल झूठ फैलाना जानते हैं और बखूबी जानते हैं ये कभी भी सच को नहीं स्वीकारेंगे। उन्होंने ऐसा तब भी किया था जब बाघों ने अपने जंगलों की रक्षा करने की ख्वाहिश में इंसानों पर हमला किया। इंसानों ने न सिर्फ जंगलों को उजाड़ दिया और फिर निर्ममता से बाघों की भी हत्या कर दी और बाद में अपने इतिहास की किताब में बाघ को दुश्मन जबकि खुदको नायक घोषित कर दिया और आज ऐसा ही मच्छरों के साथ किया जा रहा है, आगे भी किया जाता रहेगा।
ये सच है, इतिहास उन्हीं का लिखा जाता है, जिनकी जीत होती है। हारने वालों का कोई इतिहास नहीं लिखा जाता, बल्कि उनका नाम तो और धूमिल कर दिया जाता है, भले ही चाहे उनके इरादे पाक रहे हों।
हाँ! ये भी सच है कि इतिहास लिखने वाला हर शख्स स्वयं को सही और औरों को झूठा या गलत साबित करता है, ताकि भविष्य में उसका नाम अमर हो सके और लोग उसे एक सच्चे नायक की तरह पूजे परन्तु हमने ये इतिहास सच्चाई के एक और पहलू को उजागर करने के लिए लिखा है। हम चाहते हैं आप अपने विवेक का प्रयोग करके ही सही और गलत का फैसला कीजिए और जिनको न्याय मिलना चाहिए, उन्हें न्याय दिलाने में उनकी मदद कीजिए।

समाप्त!

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